
PUBLISHED IN RASHTRIYA SAHARA – HASTKSHEP
राजधानी नई दिल्ली में घरेलू बाल मजदूरों पर जारी अत्याचार को देखते हु ए प्लेसमेंट एजेंसियों के कार्य करने की पद्धतियों को रेगुलेट करने की आवश्यकता है क्योंकि इनकी सहभागिता घर के कामकाजों के लिए रखे गए बच्चों के आर्थिक शोषण और मानसिक उत्पीड़न में रहती है
भारत में मानव तस्करी खासकर महिलाओं और बच्चों की तस्करी पूरी तरह संगठित अपराध है। आज प्रत्येक राज्य इसके सामाजिक और आपराधिक डर की गिरफ्त में है। वहां व्यापारिक तौर पर यौन उत्पीड़न जारी है और बेगारी कराने, बंधुआ मजदूरी और गुलामी के लिए बच्चों और महिलाओं की तस्करी में काफी वृद्धि हुई है। मजदूरी के लिए झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों से बच्चों की तस्करी में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। बच्चों की तस्करी के धंधे को अंजाम गैरकानूनी रूप से चल रही प्लेसमेंट एजेंसियां दे रही हैं। इनमें से अधिकतर प्लेसमेंट एजेंसियां दिल्ली और एनसीआर के शहरों से संचालित की जा रही हैं। इन राज्यों से बच्चों को लाकर ये प्लेसमेंट एजेंसियां खूब मुनाफा कमा रही हैं। जब एक बार ये बच्चे राजधानी पहुंच जाते हैं तो ये एजेंसियां इन बच्चों को नियुक्त करने की चाह रखने वाले नियोक्ता तक पहुंचा देते हैं जो उन्हें अग्रिम रकम के तौर पर 30 से 45 हजार रुपये और प्लेसमेंट एजेंसी की चार्ज फीस के रूप में अतिरिक्त दस से पंद्रह हजार रुपये देते हैं। जब एक बार पैसों का भुगतान हो जाता है तो बच्चों की देखभाल का जिम्मा पूरी तरह नियोक्ता का होता है इसके बाद नियोक्ता इन बच्चों को बिना किसी वेतन या अवकाश दिए पूरे 10-14 घंटे काम कराते हैं। वहीं दूसरी ओर, प्लेसमेंट एजेंसियों के द्वारा लिया गया अग्रिम भुगतान कभी भी उस बच्चे के परिवार के पास नहीं पहुंचता। कुछ दिनों के बाद ये बच्चे बंधुआ मजदूर बन जाते हैं और उनसे लगातार जबर्दस्ती काम कराया जाता है। मालूम हो कि बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराए
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बच्चों ने शारीरिक और यौन शोषण, प्रताड़ना और मारपीट को लेकर कई शिकायतें भी दर्ज कराई हैं। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने 2010-12 के बीच विभिन्न संस्थाओं से मिलकर ऐसे सैकड़ों बच्चों को मुक्त कराया। दिल्ली सरकार के श्रम विभाग ने ‘दिल्ली प्राइवेट प्लेसमेंट एजेंसीज (रेगुलेशन) बिल, 2012’ नामक कानून तैयार किया था। राजधानी में घरेलू मजदूरों पर जारी अत्याचार को देखते हुए इन प्लेसमेंट एजेंसियों के कार्य करने की पद्धतियों को रेगुलेट करने की आवश्यकता है क्योंकि इनकी सहभागिता घर के कामकाजों के लिए लिए रखे गए बच्चों के आर्थिक शोषण और मानसिक उत्पीड़न में रहती है।